नई दिल्ली: कश्मीर की कहानियां भले ही अक्सर आतंकवादी हमलों, संघर्ष और हत्या को लेकर सामने आती हों लेकिन इस बार वहां के दो दोस्त द गुड न्यूज लेकर आए हैं. यह लघु फिल्म उनके गृह क्षेत्र में उम्मीद और आम कश्मीरी के नजरिये को दर्शाने की कोशिश है. फिल्म का लेखन और निर्देशन दानिश रेन्जु ने किया है जबकि इसकी सह-निर्माता सुनयना काचरू हैं- एक कश्मीरी मुसलमान और दूसरी कश्मीरी पंडित. घाटी के लोगों को जिस नजरिये से देखा जाता है उसमें बदलाव लाने की इच्छा से 10 मिनट की यह लघु फिल्म इन्होंने तैयार की है.
खबर में खास
- घाटी में राजनीति और नफरत से परे देखना
- मेरी सबसे अच्छी दोस्त सुनयना
- कश्मीर में संस्कृति का नुकसान
- कश्मीर में कई अलग-अलग दृष्टिकोण
घाटी में राजनीति और नफरत से परे देखना
पिछले हफ्ते लंदन में टंग्स ऑन फायर यूके एशियन फिल्म फेस्टिवल में प्रदर्शित की गई अपनी फिल्म के बारे में रेन्जु ने श्रीनगर से ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, मकसद है घाटी में राजनीति और नफरत से परे देखना. पिछले साल कश्मीरी पंडितों और गैर मुस्लिम अल्पसंख्यकों पर एक के बाद एक हुए हमलों को ध्यान में रखकर फिल्म की परिकल्पना और कहानी लिखी गई. द गुड न्यूज एक सच्ची कहानी है जो दो महिलाओं और संघर्ष की पृष्ठभूमि में उनकी दोस्ती के इर्द-गिर्द घूमती है.
मेरी सबसे अच्छी दोस्त सुनयना
रेन्जु ने कहा, हम मानवीय नजरिये पर ध्यान केंद्रित करना चाहते थे. यह निश्चित रूप से इसलिए संभव हो पाया क्योंकि मेरी सबसे अच्छी दोस्त सुनयना भी एक कश्मीरी पंडित है. रेन्जु ने कहा, पिछले साल सितंबर, अक्टूबर में हुए हमले वास्तव में परेशान करने वाले थे. सुनयना के लिए भी, क्योंकि वह 90 के दशक में श्रीनगर में रहने की पूरी यात्रा से गुजरी हैं. उन्होंने कहा, मैं कश्मीर में पला-बढ़ा हूं जहां हमने पंडितों को कभी नहीं देखा, उन्हें जाने के लिए मजबूर किया गया … जब यह फिर से हुआ, एक फिल्म निर्माता होने के नाते, यह कुछ ऐसा है जो मैं वास्तव में करना चाहता था और मुझे लगा कि इसे वहां से बाहर लाना बहुत महत्वपूर्ण था.
कश्मीर में संस्कृति का नुकसान
निर्देशक ने कहा कि वह घाटी को आम लोगों के जीवन के माध्यम से दिखाना चाहते हैं जो लंबे समय से पीड़ित हैं. द गुड न्यूज के संवाद अब बोस्टन में रह रहीं काचरू ने लिखे हैं. उन्होंने फोन पर कहा, हमारे अलग-अलग विचार हैं क्योंकि हमारे अनुभव अलग हैं और हम इसे समझते हैं. बहुत सी सामान्य चीजें हैं – हम त्रासदी को कैसे देखते हैं, कश्मीर में भाषा का नुकसान, कश्मीर में संस्कृति का नुकसान, और निश्चित रूप से, रक्तपात … अपनी जड़ों से उखाड़ दिया जाना निश्चित तौर पर मेरे लिए सबसे बड़ी चीजों में से एक है.
कश्मीर में कई अलग-अलग दृष्टिकोण
रेन्जु के मुताबिक, कश्मीर में कई अलग-अलग दृष्टिकोण हैं. उन्होंने कहा कि हर तरह की कहानियां सुनाई जानी चाहिए लेकिन उन्हें मानवीय नजरिए से बताना भी जरूरी है. उन्होंने ‘द कश्मीर फाइल्स’ के स्पष्ट संदर्भ में कहा, अतीत में जो कुछ भी हुआ है, और हाल ही में रिलीज हुई फिल्म भी … हमने फिल्म नहीं देखी है. पूरी बहस और इसकी राजनीति, निश्चित रूप से हमें इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है. हम सिर्फ लोगों को एक साथ लाना चाहते हैं. रेन्जु और काचरू पहले भी ‘हॉफविडो’ और ‘इलीगल’ जैसी फिल्मों पर साथ में काम कर चुके हैं.
