महाराष्ट्र में शिवसेना (Shiv Sena) में आपसी खींचतान के बीच दोनों धड़ों को चुनाव आयोग ने नाम आवंटित कर दिया है. उद्धव गुट को चुनाव चिन्ह भी आवंटित कर दिया गया है. उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) को चुनाव चिन्ह के रूप में मशाल मिला है. वहीं मशाल जो कभी जॉर्ज फर्नांडीज (George Fernandiz) और नीतीश कुमार (Nitish kumar) के नेतृत्व वाली समता पार्टी (Samta Party) का चुनाव चिन्ह हुआ करता था, अब उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना की शान होगा. एकनाथ शिंदे गुट से भी चुनाव आयोग ने 3 विकल्प मांगे हैं. बता दें कि शिवसेना में आपसी लड़ाई के चलते उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार गिर गई थी और एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) बीजेपी के सहयोग से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने थे. हालांकि उद्धव ठाकरे ने चुनाव चिन्ह फ्रीज करने के चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर की है.
खबर में खास
- शिवसेना के चुनाव निशान पर दावा कर रहे थे दोनों गुट
- पहले चुनाव में समता पार्टी को मिली थीं केवल 7 सीटें
- मार्च 2000 में नीतीश कुमार सीएम बने पर बहुमत नहीं
- बिहार के अलावा मणिपुर में भी कुछ दिन के लिए सीएम
- अक्टूबर 2003 में जनता दल यूनाइटेड में विलय का ऐलान
शिवसेना के चुनाव निशान पर दावा कर रहे थे दोनों गुट
चुनाव आयोग ने उद्धव गुट को चुनाव चिन्ह आवंटित करते हुए कहा कि मशाल चुनाव चिन्ह समता पार्टी का निशान था, जिसे 2004 में क्षेत्रीय पार्टी के रूप में मान्यता दी गई थी. उद्धव गुट वाली पार्टी का नाम शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) दिया गया है तो एकनाथ शिंदे वाली शिवसेना को बालासाहेबांचीशिवसेना नाम से जाना जाएगा. चुनाव आयोग ने अंधेरी पूर्व विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव के लिए शिवसेना के चुनाव निशान धनुष और बाण के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है. इस चुनाव निशान पर दोनों गुट दावा कर रहे थे.
पहले चुनाव में समता पार्टी को मिली थीं केवल 7 सीटें
अब, आइए जानते हैं समता पार्टी मशाल चुनाव निशान के साथ कितना आगे बढ़ी. जॉर्ज फर्नांडीज, नीतीश कुमार आदि नेताओं ने मिलकर 1994 में लालू प्रसाद यादव के खिलाफ एक नए दल का निर्माण किया और नाम दिया समता पार्टी. इसका चुनाव निशान मशाल रहा. समाजवादी विचारधारा के नाम पर पैदा हुई पार्टी पहले ही चुनाव में कोई खास कमाल नहीं दिखा सकी थी. 1995 के विधानसभा चुनाव में समता पार्टी को केवल 7 सीटें हासिल हुईं और 1996 के लोकसभा चुनाव में समता पार्टी ने बीजेपी के साथ गठबंधन किया था.
मार्च 2000 में नीतीश कुमार सीएम बने पर बहुमत नहीं
1996 के लोकसभा चुनाव मं समता पार्टी को बिहार में 6, उत्तर प्रदेश और ओडिशा में एक एक लोकसभा सीटें हासिल हुइं. उसके बाद 1998 के आम चुनाव में समता पार्टी को 12 सीटें हासिल हुईं. मार्च 2000 में नीतीश कुमार को बिहार में एनडीए की ओर से सीएम फेस घोषित किया गया और 3 मार्च को उन्होंने पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. 324 सदस्यीय विधानसभा में एनडीए के पास केवल 151 विधायक थे तो लालू प्रसाद यादव की पार्टी के पास 159 विधायक, जबकि बहुमत के लिए 163 विधायकों की जरूरत थी. नीतीश कुमार को इस्तीफा देना पड़ा क्योंकि वे सदन में बहुमत साबित नहीं कर सकते.
Also Read: हेलीकॉप्टर से निकलते थे मुलायम सिंह यादव तो यहां की महिलाएं घूंघट कर लेती थीं
बिहार के अलावा मणिपुर में भी कुछ दिन के लिए सीएम
समता पार्टी ने कुछ ही समय के लिए ही सही मणिपुर में भी अपना करिश्मा दिखाया था. 15 फरवरी 2001 को राधाविनोद कोइजम समता पार्टी की ओर से दूसरे सीएम बने थे, लेकिन उसी साल मई में अल्पमत के कारण सरकार गिर गई थी. अल्प समय के लिए ही सही, समता पार्टी की ओर से नीतीश कुमार और राधाविनोद कोइजम मुख्यमंत्री बनने में सफल हुए थे, लेकिन सरकार टिक नहीं पाई थी.
अक्टूबर 2003 में जनता दल यूनाइटेड में विलय का ऐलान
बाद के दिनों में कर्नाटक के तत्कालीन सीएम जेएच पटेल ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को समर्थन देने का फैसला किया, जिससे जनता दल दोफाड़ हो गया. एचडी देवगौड़ा ने जनता दल सेक्यूलर नाम से नई पार्टी बना ली और जो बाकी नेता थे, उनके गुट को जनता दल यूनाइटेड के रूप में मान्यता मिली थी. जनता दल यूनाइटेड के अध्यक्ष हुए शरद यादव. समता पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष जॉर्ज फर्नांडीज ने अक्टूबर 2003 में ऐलान किया था कि जनता दल यूनाइटेड के साथ समता पार्टी का विलय होगा.
