देश में राष्ट्रपति चुनाव (President Election) को लेकर सियासी पारा चढ़ता जा रहा है. सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों ही अपनी-अपनी कमर कस चुके हैं. विपक्ष की कोशिश है कि इस बार बीजेपी को धूल चटाई जाए. इसकी जिम्मेदारी TMC सुप्रीमो और पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने उठाई है. विपक्ष की अगुवाई करते हुए ममता ने बुधवार को सभी विपक्षी दलों की मीटिंग बुलाई थी, जिसमें राष्ट्रपति चुनाव को लेकर रणनीति तैयार की जानी थी. लेकिन बैठक में विपक्ष के कई दल नहीं पहुंचे. खास बात ये रही कि आम आदमी पार्टी की ओर से भी कोई नेता बैठक में नहीं पहुंचा.
इस खबर में ये है खास
- क्या ED तय करेगी अगला राष्ट्रपति?
- प्रेशर पॉलिटिक्स काम कर रही!
- विपक्ष की मीटिंग से दूर रहे ये दल
- बंटे विपक्ष से BJP की राह आसान
- इन दलों के पास सत्ता की चाभी
क्या ED तय करेगी अगला राष्ट्रपति?
राष्ट्रपति चुनाव से पहले केंद्रीय जांच एजेंसी ED काफी एक्टिव नजर आ रही है. विपक्षी दलों के कई बड़े नेता ईडी का शिकंजा कस चुका है. कई दिग्गज नेता जेल पहुंच चुके हैं, तो कई नेताओं पर गिरफ्तारी की तलवार लटकी हुई है. महाराष्ट्र सरकार के पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख और मंत्री कैबिनेट नवाब मलिक जेल पहुंच गए हैं. दोनों ही एनसीपी के बड़े नेता माने जाते हैं. वहीं दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन भी सलाखों के पीछ हैं. आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता और दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया का भी नंबर आ सकता है. खुद अरविंद केजरीवाल इसकी आशंका जता चुके हैं.
प्रेशर पॉलिटिक्स काम कर रही!
कांग्रेस को घेरने के लिए नेशनल हेरॉल्ड का जिन्न भी बाहर आ चुका है. इस मामले में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी बुरी तरह से घिर चुके हैं. राहुल गांधी से तो पूछताछ जारी है, जबकि सोनिया को भी जल्द ही ईडी के सामने पेश होना है. गांधी परिवार पर हुई इस कार्रवाई से विपक्ष में खलबली मच गई है. कांग्रेस भले ही संघर्ष कर रही हो, लेकिन उसे विपक्ष का साथ नहीं मिल रहा है. राजनीति के जानकारों का कहना है कि प्रेशर पॉलिटिक्स धरातल पर काम कर रही है. केंद्रीय एजेंसी के डर से ही आम आदमी पार्टी ने बैठक से दूरी बनाए रखी. जबकि ममता और केजरीवाल के संबंध काफी अच्छे हैं. बसपा सुप्रीमो मायावती भी ईडी के डर से ही मीटिंग से दूर रहीं.
विपक्ष की मीटिंग से दूर रहे ये दल
इस बैठक में विपक्ष के 22 दलों के नेताओं को बुलाया गया था, जिसमें से सिर्फ 16 दलों के नेता ही पहुंचे थे. बसपा अध्यक्ष मायावती, अकाली दल अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल, बीजद अध्यक्ष और ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक, YSR कांग्रेस चीफ और आंध्र प्रदेश के सीएम वाईएस जगन मोहन रेड्डी और टीआरएस प्रमुख एवं तेलंगाना के सीएम केसीआर को भी बुलाया गया था. लेकिन ये नेता बैठक में शामिल नहीं हुए थे, ना ही इनके दलों से कोई नेता पहुंचा. इसके अलावा असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM भी इस बैठक से दूर रही.
बंटे विपक्ष से BJP की राह आसान
2017 के मुकाबले में आज परिस्थितियां काफी बदल चुकी हैं. बीते 5 वर्षों में बीजेपी की ताकत काफी कम हुई है. 2017 में जब रामनाथ कोविंद चुने गए थे, तब 21 राज्यों में एनडीए की सरकारें थीं. अब सिर्फ 17 राज्यों में ही एनडीए सत्ता में बची है. महाराष्ट्र, तमिलनाडु, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और झारखंड जैसे अहम राज्य उसके हाथ से निकल चुके हैं. शिवसेना, टीडीपी और अकाली दल जैसे दल भी एनडीए से बाहर हो चुके हैं. जेडीयू जरूर बीजेपी के साथ आई है, लेकिन नीतीश कुमार ने उस वक्त भी बीजेपी उम्मीदवार का ही समर्थन किया था. हालांकि बंटे हुए विपक्ष से बीजेपी की राह आसान समझ में आ रही है.
इन दलों के पास सत्ता की चाभी
राष्ट्रपति चुनाव में बीजेपी के नेतृत्व में एनडीए तकरीबन 13,000 वोट दूर है. बीजेपी को यदि अकेले ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक या आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएसआर जगन मोहन रेड्डी का समर्थन मिल गया तो उसका प्रत्याशी जीत जाएगा. पटनायक और जगन मोहन रेड्डी पहले भी कई बार मोदी सरकार का साथ दे चुके हैं. इसके अलावा तेलंगाना के सीएम केसीआर भी यदि बीजेपी के साथ चले गए, तो बीजेपी की नैया पार हो जाएगी. हालांकि केसीआर और बीजेपी के बीच में पिछले कुछ महीनों में मतभेद काफी बढ़ चुके हैं. लेकिन इस बैठक से उनकी दूरी नए समीकरणों को हवा दे रही है.
