नई दिल्ली: मस्ती से झूमते नाचते गाते लोग, बारात लेकर जाते लोग लेकिन इस बारात में खास बात ये है कि इसमें ना तो दूल्हा है और ना ही दुल्हन है. दरअसल ये बारात जा रही है यूपी के बहराइच के सैयद सलार मसूद गाजी(Sayed Salar Masood Ghazi) की दरगाह पर जहां हजारों साल पुरानी ये परंपरा हिंदु मुस्लिम एकता की मिसाल भी पेश करती है. यहां हिंदू मुस्लिम दोनों धर्म के लोग भारी संख्या में शामिल होते हैं.
क्या है मान्यता
सैयद सलार मसूद गाजी की दरगाह पर हर साल ज्येष्ठ महीने में विशाल मेला लगता(Fair In Sayed Salar Masood Ghazi)है जो एक माह तक चलता है. ज्येष्ठ माह के पहले रविवार को होने वाले मुख्य मेले के दिन गाजी बाबा की बरात मुख्य आकर्षण का केंद्र होती है. इसमें शामिल होने के लिए यूपी के कई जिलों समेत, पड़ोसी राष्ट्र नेपाल व मुंबई, दिल्ली, कोलकाता से लाखों की संख्या में लोग यहां पहुंचते हैं.
मन्नत पूरी होने पर लाते हैं बारात
यहां पहुंचे श्रद्धालु अपनी श्रद्धानुसार पूजा पाठ करते हैं तो कोई अकीदत पेश करते हैं. कोई त्रिशूल गाड़कर मन्नतें मांगता है तो कोई फातिया करके दुआ मांगता है. यही खास बात इस पवित्र जगह को और खास बनाती है. आमतौर पर किसी मुस्लिम दरगाह पर ढोल तमाशा, गोले, पटाखे दागने की इजाजत नहीं होती है, लेकिन यहां एक माह तक लोग इसी तरह से झूमते नाचते, गाते, गोला, पटाखे दागते बारात लेकर आते हैं. दरअसल यहां बारात की प्रथा मन्नत पूरी होने से जूड़ी है. जिस किसी की भी मन्नत पूरी होती है. वह बारात लेकर यहां आता है.
