ये आंसू मेरे दिल की जुबान हैं. मैं हंस दूं तो हंस दे आंसू. मैं रो दूं तो रो दे आंसू. ये आंसू मेरे दिल की जुबान हैं. दो बूंद आंसुओं की कीमत आतंकी क्या जानें. इन आंसुओं की कीमत एक अच्छा भला परिवार ही जान सकता है, जिसके पास अपनों के लिए मर्म होता है, संवेदनाएं होती हैं. राहुल भट के परिवार को ही लें, आंसुओं के सैलाब से कश्मीर ‘समंदर’ हुआ जा रहा है. बूढ़े बाप के आंसू, बेवा बीवी के आंसू, मां के आंसू, बेटी के आंसू. ये आंसू जाहिर कर रहे हैं कि राहुल भट भले ही नहीं रहे, लेकिन उनकी यादें परिवार के जेहन में, अपनों के जेहन में हमेशा बनी रहेंगी.

आतंकियों को क्या पता कि जिसे अंगुली पकड़कर चलना सिखाया हो, उसी की अर्थी को कंधा देने का बोझ क्या होता है. कलेजा फट जाता है. उस बच्ची के बारे में सोचो, जो अपने पापा की जान है लेकिन अब पापा ही नहीं रहे तो उसके बचपन का क्या होगा. बुढ़ापे की लाठी तो बची नहीं, पांच साल की पोती ही अब अपने दादा के आंसू पोंछ रही है. उसे अब भी यकीन है कि उसके पापा लौटकर आने वाले हैं. वह अपने पापा की राह तक रही है. आंसू पोछती पोती को दोनों हाथों से पकड़कर खुद को दिल से मजबूत दिखाने की कोशिशि कर रहे हैं.

बेटे की मौत की खबर ने बूढ़े बाप की आंखों को सैलाब बना दिया, लेकिन अब उनकी आंखें सूख गई हैं. वे बेटे के हत्यारों की मौत की कामना कर रहे हैं.

पत्नी मीनाक्षी कहती है कि जब वे रास्ते में जाते थे तो लोग उन्हें सलाम करते थे. लोग कहते थे कि राहुल के बिना बडगाम अधूरा लगता है. मौत से 10 मिनट पहले ही बात हुई थी तो क्या पता था कि कुछ ही कालखंड में उनका सुहाग उजड़ने वाला है.

राहुल भट की मां का कहना है कि सरकार उनके बेटे को लौटाकर दे. परिवारवालों की मौजूदगी में राहुल भट का अंतिम संस्कार किया गया. इस दौरान घरवालों की चीत्कार से माहौल गमगीन बना हुआ था. पत्नी मीनाक्षी का कहना था कि मुझे कुछ नहीं चाहिए. बस हत्यारों को घसीट—घसीटकर मार दो.




दक्षिण कश्मीर में कश्मीरी पंडितों ने राहुल भट की हत्या के खिलाफ जमकर प्रदर्शन किया. कई जगह सड़क मार्ग भी जाम किए गए और सरकार के अलावा प्रशासन विरोधी नारेबाजी की गई.
