दिल्ली हाईकोर्ट से उद्धव ठाकरे को बड़ा झटका लगा है. उद्धव ठाकरे ने चुनाव आयोग द्वारा शिवसेना का नाम और चुनाव चिह्न (धनुष और तीर) को फ्रीज करने वाले आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. ठाकरे का कहना था कि शिवसेना को उनके पिता ने बनाया था और 30 साल से वे पार्टी को चला रहे हैं. वहीं उद्धव की याचिका को निरस्त करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि चुनाव चिन्हों को राजनीतिक दल अपनी विशिष्ट संपत्ति नहीं मान सकते हैं. कोर्ट ने आगे कहा कि यदि वे चुनाव हार जाते हैं तो प्रतीक के उपयोग का अधिकार खो सकता है.
चुनाव चिह्न दलों की संपत्ति नहीं- HC
कोर्ट ने चुनाव आयोग द्वारा जारी किए गए चुनावी निशान को केवल निरक्षर मतदाताओं के लिए विशेष बताया. कोर्ट ने कहा कि यह केवल एक प्रतीक चिन्ह है, जो विशेष राजनीतिक दलों के साथ जुड़ा होता है ताकि लाखों निरक्षर मतदाताओं को विशेष दल से संबंधित अपने पसंद के उम्मीदवार को वोट करने में आसानी हो. इससे निरक्षर मतदाताओं को अपने अधिकार का उचित प्रयोग करने में मदद मिलती है. कोर्ट ने कहा कि संबंधित राजनीतिक दल इसे अपनी विशिष्ट संपत्ति नहीं मान सकते.
सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट का दिया हवाला
हाईकोर्ट ने कहा कि चुनाव चिन्हों को राजनीतिक दल अपनी विशिष्ट संपत्ति नहीं मान सकते हैं. कोर्ट ने आगे कहा कि यदि वे चुनाव हार जाते हैं तो प्रतीक के उपयोग का अधिकार खो सकता है. हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट में सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारत निर्वाचन आयोग के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि एक प्रतीक कोई मूर्त वस्तु नहीं है और न ही यह कोई धन उत्पन्न करता है.
चुनाव आयोग को मामला सुलझाने का निर्देश
कोर्ट ने चुनाव आयोग को भी इस मामले को जल्द से जल्द सुलझाने का आदेश दिया है. शिवसेना का विवाद अभी थमा नहीं है. शिंदे गुट की बगावत के बाद दो धड़ों में बंटी शिवसेना को चुनाव आयोग ने फिलहाल के लिए नया नाम और नया चुनाव चिह्न आवंटित कर दिया है और पुराने नाम और चुनाव निशान को फ्रीज कर दिया था. लेकिन, उद्धव ठाकरे इससे खुश नहीं हुए. उद्धव ठाकरे को शिवसेना का पुराना वाला ही चुनाव निशान (धनुष और तीर) चाहिए, इसीलिए वे चुनाव आयोग के निर्णय के खिलाफ कोर्ट चले गए थे. हालांकि अब हाईकोर्ट से भी उन्हें झटका लगा है.
