China VS India: दुनिया में सुपर पॉवर बनने का सपना बुन रहा चीन हिंद प्रशांत महासागर में अपनी पहुंच गहरी करने के लिए कई दशकों से काम कर रहा है वो स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स यानि कि मोतियों की माला के जरिए भारत को घेर रहा है चीन को करारा जवाब देने के लिए अब भारत ने भी कमर कस ली है और फ्रांस तथा जापान के साथ मिलकर ड्रैगन के खिलाफ ‘नेकलेस ऑफ डॉयमंड’ नीति को मजबूत करने में जुट गया है. इसी रणनीति के तहत भारत का समुद्री शिकारी पी-8 आई विमान फ्रांस के रियूनियन द्वीप नेवल बेस पर उतरा है. वहीं जापान में भी भारतीय नौसेना के युद्धपोत पहुंचे हैं.
खबर में खास
- तीसरी बार उतारा शक्तिशाली P-8I को रियूनियन द्वीप पर
- हिंद महासागर पर क्यों है चीन की नजर
- क्या है स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स ?
- क्या है भारत का नेकलेस ऑफ डायमंड ?
भारत के पड़ोसी मुल्कों में बंदरगाह, नवल बेस, मिल्ट्री बेस लीज पर लेकर या अपनी डेब ट्रेप नीति के जरिए छोटे गरीब मुल्कों में अपना मिल्ट्री बेस खड़ा करके भारत को घेरने की रणनीति पर कई सालों से काम कर रहा है और इस बात से भारत कभी अंजान भी नहीं था वो जानता था चीन के इरादों के बारे में इसीलिए देर से सही भारत ने चीन के स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स की नीति को मुंह तोड़ जवाब देने का ठाना और उसके स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स को नेकलेस ऑफ डायमंड से काउंटर करने का ठाना है.
तीसरी बार उतारा शक्तिशाली P-8I को रियूनियन द्वीप पर
भारतीय नौसेना ने तीसरी बार बेहद शक्तिशाली पी-8 आई निगरानी विमान को रियूनियन द्वीप पर उतारा है. भारत ने यह कदम ऐसे समय पर उठाया है जब चीन ने पश्चिमी हिंद महासागर में अपनी मौजूदगी को काफी बढ़ा दिया है. कहा तो यह भी जा रहा है कि चीन अफ्रीका में एक और नेवल बेस बनाने जा रहा है. इससे पहले साल 2020 में भारतीय नौसेना ने अपने इस शिकारी को रियूनियन द्वीप पर उतारा था. यही नहीं भारतीय विमान ने इस इलाके में तैनात फ्रांस के युद्धपोतों के साथ मिलकर सर्विलांस का काम किया था. भारत ने इस विमान को ऐसे समय पर रियूनियन भेजा है जब भारत ने पहले त्रिपक्षीय नौसैनिक अभ्यास को दो पूर्व अफ्रीकी देशों तंजानिया और मोजांबिक के साथ मिलकर अंजाम दिया है. यह अभ्यास पश्चिमी हिंद महासागर में अफ्रीका महाद्वीपी के पूर्वी तट पर अंजाम दिया गया.
हिंद महासागर पर क्यों है चीन की नजर ?
भारत ने अपनी समुद्री सुरक्षा रणनीति के लिए मोजाबिंक चैनल समेत दक्षिण पश्चिम हिंद महासागर, चीनी के भारी भरकम निवेश वाले पूर्वी अफ्रीकी तट को बेहद अहम मानता है. विश्लेषकों का मानना है कि ये अभ्यास हिंद महासागर में पूर्वी अफ्रीकी देशों और द्वीपीय देशों के साथ रक्षा संबंधों को मजबूत करने के प्रयासों का हिस्सा है. पिछले कुछ वर्षों में हिंद महासागर भारत और चीन के बीच टकराव का नया केंद्र बनता जा रहा है. भारत ने चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स की नीति को मात देने के लिए नेकलेस ऑफ डायमंड नीति को मजबूत करना शुरू किया है. हिंद महासागर दुनिया के लिए बहुत ही अहम है. दुनिया का दो तिहाई तेल, एक तिहाई सामान और विश्व के आधे कंटेनर इसी हिंद महासागर के रास्ते से होकर गुजरते हैं.
क्या है स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स ?
चीन काफी लंबे समय से भारत को हिन्द महासागर में घेरने के प्रयास में लगा है. जिसके लिए वो एक योजना पर काम कर रहा है जिसे स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स कहा जाता है. पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट, श्रीलंका के हंबनटोटा, बांग्लादेश के चिटगोंग पोर्ट, म्यांमार का क्यौकप्यू पोर्ट, मालदीव के फेयधूफिनोल्हु द्वीप को चीन ने अपना बेस बनाया. भारत को घेरने की इस नीति को चीन स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स का नाम देता है.
चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स नीति उसकी उसी सिल्क रूट का हिस्सा है जिसे वो बेल्ट एंड रोड एनिसिएटिव का नाम देता है. कंबोडिया से शुरू होकर म्यांमार, बांग्लादेश, श्रीलंका, मालदीव, पाकिस्तान से होते हुए ये रास्ता सुडान तक जाता है. अगर इस रास्ते को जोड़कर देखें तो ये साफ तौर पर भारत को घेरता हुआ दिखाई पड़ता है. भारत को घेरने की रणनीति के तहत ही चीन इन देशों के पोर्ट और द्वीप पर अपने बेस बना रहा है.
क्या है भारत का नेकलेस ऑफ डायमंड ?
भारत का डायमंड नेकलेस चीन की पर्ल्स ऑफ स्ट्रिंग घेराबंदी से मुकाबले में भारत भी पलटवार में नेकलेस ऑफ डायमंड की रणनीतिक पर काम तेज कर चुका है. इस कड़ी में चीन के पड़ोसी मुल्कों के साथ रणनीतिक साझेदारी और सैन्य सहयोग समझौतों की श्रृंखला खड़ी कर भारत ने भी जवाबी मोर्चाबंदी मजबूत की है. इसमें इंडोनेशिया के सबांग द्वीप, सिंगापुर को चांगी बंदरगाह, ओमान के दाकाम, ईरान के चाबहार, वियतमान के साथ रक्षा सहयोग और मंगोलिया के लैंड पोर्ट पर साझेदारी के समझौतों को मुकर्रर किया है.
