नई दिल्ली. अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की अध्यक्ष (US House Speaker) नैंसी पेलोसी (Nancy Pelosi) की ताइवान (Taiwan) यात्रा से चीन और US (China and America) के तनाव बढ़ा गया है. पेलोसी की ताइवन यात्रा को लेकर चीन ने अमेरिका को आंख दिखाई है. चीन ने कहा, अगर अमेरिका की नैंसी पेलोसी ताइवान (Taiwan) की यात्रा करती हैं, तो वहां कड़ा जवाब देगा. इधर चीन के ताइवान को लेकर रुख पर अमेरिका ने कहा कि अगर अमेरिकी हाउस स्पीकर नैन्सी पेलोसी द्वीप का दौरा करते हैं तो चीन ताइवान के पास मिसाइल दागने जैसे “सैन्य उकसावे” को अंजाम दे सकता है. चीन हमेशा से ताइवान को अपना क्षेत्र बताता रहा है. वह मानता है कि ताइवान चीन का एक अलग प्रांत है, जोकि फिर से बीजिंग के नियंत्रण में होगा.
इस खबर में ये है खास-
- ताइवान खुद को मानता स्वतंत्र देश
- 1945 में चीन ने ताइवान पर किया कब्जा
- China करता रहा है ताइवान पर दावा
- ताइवान की संघर्ष के समय US करेगा मदद!
- इस कारण से चीन चाहता है ताइवान पर नियंत्रण
ताइवान खुद को मानता स्वतंत्र देश
वहीं ताइवान (Taiwan) खुद को एक स्वतंत्र देश के रूप में मानता है. उसका अपना एक संविधान और लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित नेता है. बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Xi Jinping) ने कहा कि ताइवान का चीन (China) के साथ एकीकरण पूरा होना चाहिए. कहा गया कि इसे प्राप्त करने के लिए बल के संभावित उपयोग से इंकार नहीं किया है. बता दें कि ताइवान एक द्वीप है, जो दक्षिण पूर्व चीन के तट से लगभग 100 मील दूर है. यह तथाकथित “पहली द्वीप श्रृंखला” में बैठता है, जिसमें अमेरिका (America) के अनुकूल क्षेत्रों की एक सूची शामिल है जो अमेरिकी विदेश नीति के लिए महत्वपूर्ण हैं.
1945 में चीन ने ताइवान पर किया कब्जा
जब 17 वीं शताब्दी में किंग राजवंश का शासन ताइवान (Taiwan) द्वीप पर था, उस समय यह द्वीप पहली बार पूर्ण रूप से चीनी नियंत्रण में आया था. इसके बाद 1895 में उन्होंने पहला चीन-जापानी युद्ध (Sino Japanese war) हारने के बाद इस द्वीप छोड़ दिया. वहीं 1945 में चीन ने फिर से द्वीप पर कब्जा कर लिया, जब जापान द्वितीय विश्व युद्ध (World War Two) में हार गया था. लेकिन चियांग काई-शेक और माओत्से तुंग की कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी सरकारी ताकतों के बीच मुख्य भूमि चीन में एक गृह युद्ध छिड़ गया. 1949 में कम्युनिस्टों ने जीत हासिल की और बीजिंग पर अधिकार कर लिया. कुओमिन्तांग ताइवान भाग गया, जहां उन्होंने अगले कई दशकों तक शासन किया.
China करता रहा है ताइवान पर दावा
अब चीन इसी इतिहास के आधार पर कहता है कि ताइवान मूल रूप से एक चीनी प्रांत था. जबकि ताइवानी उसी इतिहास की ओर इशारा करते हुए तर्क देते हैं कि वे उस आधुनिक चीनी राज्य का हिस्सा नहीं थे जो पहली बार 1911 में क्रांति के बाद बना था. खास बात है कि दुनिया के केवल 13 देश ऐसे हैं जो ताइवान को एक संप्रभु देश के रूप में मान्यता देते हैं. अब अगर चीन औऱ ताइवान के बीच संघर्ष की स्थिति बनती है तो अमेरिका ताइवान की मदद के लिए आगे आ सकता है. ताइवान हथियार का आयात अमेरिका से करता है.
ताइवान की संघर्ष के समय US करेगा मदद!
मई में राष्ट्रपति जो बाइडन (Joe Biden) ने अमेरिका का रुख स्पष्ट किया है. बाइडन से जब पूछा गया था कि क्या अमेरिका ताइवान की सैन्य रूप से मदद करेगा, तो उन्होंने हां में जवाब दिया था. चीन और ताइवान के बीच स्थिति उस समय और तनाव पूर्ण हो गई थी, जब चीन ने 2021 में ताइवान (Taiwan) के एयर स्पेस में अपने फाइटर प्लेन भेजा था. चीन ने फाइटर प्लेन भेजकर दबाव बढ़ाया. ताइवान ने 2020 में विमान घुसपैठ के आंकड़ों को सार्वजनिक किया. अक्टूबर 2021 में एक ही दिन में 56 विमानों की घुसपैठ हुई थी. वैसे चीन अपनी विस्तारवादी नीति के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है.
इस कारण से चीन चाहता है ताइवान पर नियंत्रण
चीन का ताइवान (Taiwan) पर नियंत्रण करने के पीछ का कारण यह भी है कि फोन से लेकर लैपटॉप, घड़ियां और गेम कंसोल तक दुनिया के अधिकांश रोजमर्रा के इलेक्ट्रॉनिक उपकरण ताइवान में बने कंप्यूटर चिप्स द्वारा संचालित होते हैं. सबसे खास बात है कि ताइवानी कंपनी – ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी या TSMC के पास दुनिया के आधे से अधिक बाजार हैं. TSMC एक ऐसी कंपनी है, जो सैन्य ग्राहकों द्वारा डिज़ाइन किए गए चिप्स बनाती है. यह एक विशाल उद्योग है, जिसकी कीमत 2021 में लगभग $100bn है. अगर चीन का ताइवान पर कब्जा होता है, तो बीजिंग को दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण उद्योगों में से एक पर नियंत्रण मिल सकता है.
